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कंजूस राजा
किसी राज्य में एक कंजूस राजा रहता था. वह किसी को कुछ न देता डॉ. नाराज होता तो दंड अवश्य देता. एक बार राजा की इच्छा पुराण सुनने की हुई।
एक ब्राम्हण को पता चला तो वह राजा के पास गया और कहा, 'महाराज, मैं आपको पुराण सुनाऊंगा.'ब्राम्हण को भ्रम था कि राजा उसको काफी धन देगा. राजा ने कहा, 'मुझे तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार है.' ब्राम्हण एक वर्ष तक निरंतर पुराण सुनाने के लिए राजभवन जाता रहा. जब कार्यक्रम समाप्त होने को आया तो ब्राम्हण ने कहा, 'महाराज, अब हमें शांति पाठ करना चाहिए.' राजा पूजा के समय महल में आकर बैठ गया. साथ में न पूजा की सामग्री थी, न दान-दक्षिणा. पूजा की सारी व्यवस्था ब्राम्हण ने खुद की.
जब पूजा समाप्त हुई तो ब्राम्हण ने राजा से दक्षिणा मांगी. राजा ने मंत्री को बुलाकर कहा, 'पंडितजी को खजाने से 3 रुपये दे दो.' पंडित आश्चर्यचकित रह गया. बेचारे ने एक वर्ष घर-बार छोड़कर अपने खर्च से पुराण कथा की थी. उसके पास जो कुछ धन था, वह सब भी खर्च हो गया था. पूजा-पाठ का सामान भी अपने पैसों से लाया था. इतना सबकुछ करने के बाद राजा सिर्फ 3 रुपये दे रहा था.ब्राम्हण यह सोचकर बड़ा दुखी हुआ, 'घर में बाल-बच्चों का क्या होगा?' पर कोई चारा न देख ब्राम्हण 3 रुपये लेने मंत्री के साथ खजांची के पास गया. खजांची ने ब्राम्हण से कहा,'पंडित जी, अब तो खजाना बंद हो गया है, अगर अब मैं खजाना खोलूंगा तो मुझे एक रुपया देना होगा.' ब्राम्हण हैरान रह गया. पर उसने कहा ठीक है. खजांची 2 रुपये ब्राम्हण के हाथ में रखने लगा तो मंत्री ने कहा, 'देखिए पंडित जी, मैं आपको यहां तक लेकर आया. खजांची से रुपये दिलवाए. इस कार्य के लिए आपको मुझे एक रुपया देना होगा.' एक रुपया मंत्री को देकर अपनी तकदीर को कोसता हुआ ब्राम्हण राजमहल पहुंचा. अपनी गरीबी तथा राजा के व्यवहार के बारे मेंसोचते-सोचते वह बहुत दुखी हो रहा था. सामने एक छुरी रखी थी. ब्राम्हण ने छुरी से अपने आपको मारने का प्रयत्न किया. रानी ने भवन की खिड़की से यह सबकुछ देख लिया और उसने ब्राम्हण को अपने पास बुलाकर सब बातें पूछी, फिर कहा, 'महाराज, आप ब्राम्हण हैं, आपको आत्महत्या करना शोभा नहीं देता.' रानी ने ब्राम्हण को कुछ धन दिया और कहा कि इसे अपने घर भिजवा दीजिए. इससे ब्राम्हण बहुत खुश हुआ. फिर रानी ने ब्राम्हण से कहा कि आप थोड़ी देर यहीं ठहरें . रानी कुछ देर बाद वापस आई, ब्राम्हण को एक आंख जैसी आकार की वस्तु दी और कहा, 'अब आप इसे लेकर दरबार में जाएं, आपको अपने प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा. दरबार में आप इस पत्थर की आंख को अपने नेत्रों पर लगाकर देखिएगा.' ब्राम्हण नेत्र कीआकृति वाले पत्थर को लेकर दरबार में चला गया. उसन वैसा ही किया जैसा रानी ने कहा था. उसने देखा, सिंहासन पर राजा के स्थान पर भयंकर राक्षस बैठा था और इसी तरह दरबारियों के स्थान पर अनेक छोटे राक्षस दिखाई दिए. इस दृश्य को देखकर ब्राम्हण बहुत डरा और तुरंत वापस चला गया. उसे यूं लौटता देखकर रानी हंस पड़ी. उसने कहा, 'ब्राम्हण देवता, आपने देख लिया न, राजदरबार में बैठे सभी लोग सच्चे मनुष्य नहीं हैं. वे मनुष्य के रूप में दानव हैं. उनमें मानवता नहीं है. उनमें दया, धर्म, सत्य, अहिंसा लेशमात्र भी नहीं है. उन्हें मनुष्य कैसे कहा जाए? इसलिए आप अधिक परेशान न हों, शांत मन से घर जाइए.' इतना कहकर रानी ने ब्राम्हण को धन-संपत्ति देकर आदरपूर्वक विदा किया.
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